सामवेदीय मंत्रो के उपर संख्या
के माध्यम से १, २, ३, अङ्को में क्रमशः उदात्त , अनुदात्त , एवं स्वरित स्वरों
को दर्शाया गया है।
नारद शिक्षा में
सामवेदीय सामगेयगान सम्बन्धित कुछ निर्देश प्राप्त होते है । जैसे- कुल स्वरों की संख्या -७ ग्राम सं. ३ मूर्च्छनाए २१ एवं तानों की संख्या कुल ४९ है ।
यः सामगानां
प्रथमः ,स वेणोर्मध्यमः स्वरः ।
यो द्वितीयः स गान्धारः,
तृतीयस्वृषभः स्मृतः ।। (ना. शि.)
कुल ६ सामविकार मानें जाते है-
१.
विकार
२.
विश्लेषण
३.
विकर्षण
४. अभ्यास
५. स्तोभ
६. विराम
पूर्वाचिक के मंत्रों को सामयोनि मंत्र कहते है
।
सामगान पाँच प्रकार है-
१.
प्रस्ताव
२.
उद्गीथ
३.
प्रतिहार
४. उपद्रव
५. निधन
हुँ से प्रारम्भ होने वाला
सामगान प्रस्ताव कहलाता है, ओम से प्ररम्भ
होने वाले को उद्गीथ कहते है, प्रतिहार को
दो अर्थो को जोडने वाला कहा जाता है , एवं उपद्रव को गाने वाला ऋत्विक उद्गाता
कहलाता है ।निधन में मंत्रो के दो पद्यांश होते है । निधन का गायन प्रस्तोता,
उद्गाता,एवं प्रतिहर्ता के द्वारा किया जाता है ।
शाखाओं में प्राप्त कुल सामगेयगान
मंत्रो का क्रमशः विभाजन
राणायनी शाखा जैमिनीय शाखा
(क)
ग्रामगान ११९७ १२३२
(ख)
आरण्यक गान २९४ २९१
(ग)
ऊह गान १०२6 १८०२
(घ)
ऊह्म गान २०५ ३५६
कुल २७२२ ३६८१
सामवेदीय-ब्रह्मणग्रन्थ
सामवेद में कुल ११ ब्रह्मण
ग्रन्थ प्राप्त होते है,
पञ्चविंश ब्रह्मण- जिनमें सबसे प्रमुख ताण्डय शाखा का पञ्चविंश ब्रह्मण है, इसको
प्रौढ ताण्डय एवं महाब्रह्मण भी कहते है। इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय सोमयाग है ,
२५ अध्यायों में विभक्त है , १७वे अध्याय
में व्रात्य यज्ञ का वर्णन है ।
षड् विंश ब्रह्मण- इसमें
कुल ५ प्रपाठक है, वस्तुतः य पञ्चविंश का ही परिशिष्ट है , इसके अंतिम प्रपाठक को अदभुद् ब्राह्मण कहते है ,
इसमे भूकम्प , अकाल पुष्प आदि उत्पातों के शान्ति का विधान है ।
छान्दोग्य ब्राह्मण- इसको
मंत्र ब्राह्मण भी कहते है । इसमें दो ग्रन्थ सम्मिलित है-
१-
छान्दोग्य
ब्राह्मण- इसमें दो प्रपाठक है तथा प्रत्येक में
८ खण्ड है ।
२-
छान्दोग्य
उपनिषद्- इसमें कुल ८ प्रपाठक है ।
सामविधान ब्राह्मण- इसमें कुल ३ प्रकरण है , इसके प्रथम संस्करण में व्रतो, काम्य प्रयोग और
प्रायश्चित का वर्णन है । द्वियीय संस्करण
में पुत्र प्राप्ति के विभिन्न प्रयोगों का वर्णन है । तृतीय में नवगृह प्रयेग कृच्छ, अतिकृन्द, आदिब्रतो ,पुत्र एश्वर्य आयुष्य के विविध अनुष्ठानों का वर्णन
किया गया है ।
आर्षेय ब्राह्मण- यह ३ प्रपाठकों
में विभक्त किया गया है तथा तीनों
प्रपाठकों में कुल ८२ खण्ड है , इसका सम्बन्ध ग्रामगेय एवं
अरण्यगेय से भी है । यह सामवेद की आर्षानुक्रमणी का कार्य भी करता है ।
दैवत ब्रह्मण- यह सबसे छोटा
ब्रह्मण ग्रन्थ है ,इसमें ३ खण्ड
है इसमें देवताओं और छन्दों का
वर्णन प्राप्त होता है ,
इसमें दिये गये छन्दो का निर्वचन
विशेष है ।
संहितोपनिषद् ब्रह्मण- इसमें सामगान पद्धति का विवेचन प्राप्त होता है । यह ५ खण्डों में विभक्त है तथा प्रत्येक खण्ड सूत्रों में विभक्त है । ‘’विद्या हि ब्रह्मणमाजगाम’’
यह मंत्र तृतीय खण्ड से उद्धृत है ।
शिव त्रिपाठी
मंगलवासरः ०१/०५/१८
क्रमशः
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